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Thursday, October 25, 2012

"पुस्तक समीक्षा-“खामोश खामोशी और हम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

"खामोश खामोशी और हम"
    दो माह पूर्व मैं बड़े पुत्र से मिलने के लिए देहरादून गया तो चाचा-भतीजी के आभासी रिश्तों से जुड़ी डॉ.(श्रीमती) नूतन गैरोला से भी मिलने के लिए उनके निवास पर चला गया। ब्लॉगिस्तान की बहुत सी बातें उनसे साझा करने के बाद जब मैं चलने लगा तो भतीजी ने मुझे खामोश खामोशी और हम काव्य संग्रह की एक प्रति मुझे भेंटस्वरूप दी!
    आज इसकी समीक्षा में कुछ लिखने का मन हुआ है और खामोश खामोशी और हम के बारे में कुछ शब्द लिखने का प्रयास कर रहा हूँ! लेकिन अट्ठारह रचनाधर्मियों की कृति पर अपनी कलम चलाना भी एक दुष्कर काम है। देखिए कितना सफल होता हूँ इसमें। क्योंकि सभी की लेखनी की बानगी भी दिखाना है मुझको।
    खामोश खामोशी और हम काव्य संग्रह को ज्योतिपर्व प्रकाशन, गाजियाबाद (उ.प्र.) द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसका सम्पादन हिन्दी ब्लॉगिस्तान की जानी-मानी ब्लॉगर और साहित्यविदूषी रश्मि प्रभा ने किया है। बढ़िया जिल्दसाजी वाले इस संकलन में 268 पृष्ठ हैं और 18 रचनाधर्मियों की रचनाओं को इस संग्रह में समाहित किया गया है, जिसका मूल्य 299/- रुपये मात्र है। इस संकलन में प्रत्येक रचनाधर्मी की छः-छः रचनाओं को संकलित किया गया है।
   संकलन के प्रारम्भ में अपनी कल़म से रश्मि प्रभा जी ने कविता के माध्यम से अपनी बात कहने का प्रयास किया है-
....................
अनकहे दर्द को
अनकहे आँसू
बस विश्वास का सुकून देते हैं
वरना खामोशी
खामोशी संग नहीं बैठती...
.....................
खामोशी से खामोशी का रिश्ता
अटूट होता है
अपना होता है!
   सबसे पहले  खामोश खामोशी और हममें 27 वर्षीय युवा कवि शेखर सुमन को स्थान दिया गया है। कौमी एकता और भाई-चारे के प्रबल समर्थक इस नवोदित साहित्यकार की रचनाओं के शीर्षक हैं हाँ मैं मुसलमान हूँ, वो लम्हें जी शायद याद न हों, माँ, तुम कहाँ हो, थके हुए बादल और नयी दुनिया को इस संकलन में प्रकाशित किया गया है। ये सभी रचनाएँ पाठकों के मन पर अपना असर छोड़ती हैं। थके हुए बादल कैसे होते हैं? देखिए इस रचना की कुछ पंक्तियाँ-
कुछ थके हारे बादल मैं भी लाया हूँ
यूँ ही चलते-चलते हथेली पर गिर गये थे
उन्हें
यादों का बिछौना सजाकर दे दिया है
थोड़ा आराम कर लेंगे....
    इसके बाद श्रीमती अनीता निहलानी जी की रचनाएँ बीज से फूल तक, जागा कोई कौन सो गया, कब होगा जागरण, छूट गई जब मैं.स्वप्न और जागरण, यह अमृत का इक सागर है इस संकलन में हैं। जिनमें नैसर्गित प्यार-स्नेह और जनजागरण को बहुत कुशलता से विदूषी कवयित्री ने अपने शब्दों को पिरोया है। उदाहरणस्वरूप उनकी इस रचना का कुछ अंश देखिए-
बूढ़ी परी ने शाप दिया था उस दिन
सो गया सारा देश
राजभवन के चारों ओर उग आये बड़े-बड़े जंगल
थम गया था जीवन...
    इसके बाद कवयित्री कविता विकास की रचनाएँ बदलाव, कुछ नज़्म मेरे, साम्य, आँखों में बसता है, आशा-किरण और उड़ने की इच्छा कविताओं को इसमें स्थान दिया गया है। कविता विकास के बारे में यहाँ यह भी उल्लेख करना चाहता हूँ कि इनकी एक काव्यकृति लक्ष्य हाल में ही प्रकाशित हुई है। देखिए कविता विकास की कविता की कुछ पंक्तियाँ-
दरख्तों के साये में
अब सुकून नहीं होती
परिंदों की उड़ान में
कृत्रिम संगीत को ढोती
गाँवों की पगडण्डिया
सड़कों में तब्दील हो गयीं
चबूतरों की पंचायत
गुजरे ज़माने की बात हो गयी...
    रायपुर (छत्तीसगढ़) के किशोर कुमार खोरेन्द्र भारतीय स्टेट बैंक से अवकाशप्राप्त हैं। उन्होंने अपने परिचय के बारे में परिचय.. अपना परिचय क्या दूँ...? में उन्होंने लिखा है-
...खुद की परछाई को पाता हूँ
कभी साथ अपने
कभी लगता है तन और मन से
परे.. अस्तित्व मेरा...
मन के एकान्त में करता है विचरण
    इस संकलन में इनकी अन्य रचनाएँ भी बहुत सुन्दर और पठनीय हैं!
     बिहार के छोटे से जिले नवादा के निवासी और ग़ज़ल की चौपाल ब्लॉग के स्वामी धीरेन्द्र कुमार की बढ़िया ग़ज़लें इस संकलन में समाहित हैं।
    इनकी नूर-ए-इश्क ग़ज़ल का अंश देखिए-
चाँदनी गर तेरा नूर है, तो इश्क मेरा नूर है,
चाँदनी गर ज़िन्दगी तेरी, तो इश्क मेरा गुरूर है।
    उत्तराखण्ड, देहरादून में दून अस्पताल में महिलारोग विशेषज्ञा के रूप में कार्यरत डॉ. नूतन डिमरी गैरोला बहुत अधिक व्यस्तता के बावजूद भी लेखन कार्य कर ही लेती हैं। उनकी सभी रचनाएँ जनमानस से सीधे जुड़ी ही हैं।
  देखिए उनकी खुद से खुद की बातें रचना-
मेरे जिस्म में प्रेतों का डेरा है
कभी ईर्श्या उफनती
कभी लोभ-क्षोभ
कभी मद मोह
लहरों से उठते
और फिर गिर जाते।
पर मैं न हारी हूँ कभी,
सर्वथा जीत रही मेरी,
क्योमक रौशन दीया
रहा संग मन में मेरे
मेरी रूह में
ईश्वर का बसेरा है।
     यशवन्त राजबली माथुर 6 वर्ष की आयु से लिख रहे हैं। इनका ब्लॉग भी है जो जो मेरा मन कहे के नाम से काफी लोकप्रिय है। ये जिला बाराबंकी के दरियाबाद के निवासी हैंऔर यशवन्त माथुर के नाम से प्रसिद्ध हैं। देखिए इनकी एक रचना मोड़ की बानगी-
कल जहाँ था
आज फिर
आ खड़ा हूँ
उसी मोड़ पर
जिससे होकर
कभी गुज़रा था
भूल जाने की
तमन्ना लेकर
    अपने पति के साथ सम्प्रति देहरादून में रह रही राजेश कुमारी जी एक अच्छी माँ, अच्छी पत्नी होने के साथ-साथ एक अच्छी कवयित्री भी हैं। अभी हाल में ही इनकी एक काव्यकृति प्रकाशित हो चुकी है। माता-पिता को समर्पित इनकी एक रचना देखो शिखर सम खड़ा हुआ की बानगी देखिए-
देखो शिखर सम खड़ा हुआ
सकुचाया सा डरा-डरा
अनचाहा सा मरा-मरा
कम्पित काया भीरु मन
जाने कब हो जाए हनन
सघन तरु की छाया में
इक नन्हा पौधा खड़ा हुआ।
    हिन्दी दिवस को हाथरस में जन्मी हिन्दी सुता वीना श्रीवास्तव की भी रचनाएँ इस कंकलन में समाहित हैं, इनका ब्लॉग वीणा के सुरहिन्दी ब्लॉगिस्तान में बहुत ही चहेता ब्लॉग है।
   देखिए इनकी एक रचना तुम नहीं आये का कुछ अंश-
सब कुछ आता है
तुम नहीं आते
ये दिन ये रातें
आती जाती हैं
एक के बाद एक
    शन्नो अग्रवाल अपने परिचय में लिखती हैं-
...कभी फुरसत या तनहाई के लम्हों में शब्दों से खेल लेती हूँ और लेखनी की पिपासा कुछ शान्त हो जाती है।
इनकी रचना दीप जलें का कुछ अंश देखिए-
"आओ मिलकर दीप उठाकर
साथ चलें
घर-बाहर रौशन कर दें सारा
दीप जलें.."
     अर्थशास्त्र और हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर शिखा कौशिक ने अपनी शोध यात्रा भी पूरी कर ली है। अतः इन्हें डॉ.शिखा कौशिक लिखना ही ज्यादा उचित होगा। इनको ब्लॉग में अभी कुछ ही समय हुआ है मगर फिर भी योग्यता के कारण इनकी गणना हिन्दी के ब्लॉग लिखने वाले साहित्यकारों में होती है।
देखिए इनकी रचना सड़क का कुछ अंश-
"मैं सड़क हूँ, मैं गवाह हूँ
आपके ग़म और खुशी की
है नहीं कोई सगा पर
मैं सगी हूँ हर किसी की
   चवालीस बसन्त देख चुकी अनुलता भोपाल म.प्र. की हैं। इस संकलन में प्रकाशित इनकी एक रचना महामुक्ति का यह अंश देखिए-
"हे प्रभू
मुक्त करो मुझे
मेरे अहंकार से
दे दो कष्ट अनेक
जिससे बह जाए
अहम् मेरा
अश्रुओं की धार में
    अनन्त की ग़ज़लें और अनन्त का दर्द ब्लॉगों के स्वामी अनुराग अनन्त की भी रचनाएँ इस संकलन में हैं।
    देखिए इनकी रचना मैंने कलम उठाई हैका कुछ अंश-
मेरी कब्र खोदने के लिए ही
मैंने कलम उठाई है
कुदाली की तरह खोदेगी
ये मेरी कब्र
जींटीयों के कंधे पर चढ़कर
मैं पहुँचूँगा उस जगह
जहाँ मैं आजाद हो जाऊँगा।
    कविता और व्यंग्य लेखन के सशक्त हस्ताक्षर मुकेश तिवारी की भी कुछ रचनाओं को खामोश खमोशी और हम में स्थान मिला है। देखिए इनकी रचना माँ, केवल माँ भर नहीं होती का एक अंश-
माँ किसी भी उम्र में
केवल माँ भर नहीं होती
जबकि वो 
खुद को भी नहीं संभाल रही होती हो
तब भी विश्वसक होती है
आसरा होती है
    वाराणसी की डॉ.माधुरी लता पाण्डेय की भी कुछ रचनाएँ इस संकलन में समाहित है-
    ये अपने परिचय में कहती हैं-
मुझसे मत पूछो मेरा गाँव
सृष्टिविधा का अंग बनी हूँ
पावन सरिता बहता जीवन
इक तरुवर पर पाया ठाँव
    ज़िन्दगी की राहें ब्लॉग के स्वामी मुकेश कुमार सिन्हा की भी कुछ रचनाएँ इस संकलन में हैं। देखिए इनकी लेखनी की बानगी का कुछ अंश आभासी मैं-
चेहरे पर ब्रश से फैलाता
शैविंग क्रीम
तेजी से चलता हाथ
ऑफिस जाने की जल्दी
सामने आइने में
दिखता अक्स...
ओह!
आज अनायास्
टकरा गई नज़रें
दिखे..दो चेहरे
शुरू हो गई
आपस में बात
एक तो मैं ही था
और..!
एक आभासी मैं
     इस संकलन में स्थान प्राप्त रजनीश तिवारी का ब्लॉग है-रजनीश का ब्लॉग देखिए इनकी रचना एक बून्द का कुछ अंश-
ओस की इक बूंद
जम कर घास पर
मोती हो गई
    रीता प्रसाद उर्फ ऋता शेखर मधु को हाइकू, हाइगा, तांका, चोका, कविता और आलेख आदि कई विधाओं में महारत हासिल है। इनको भी इस संकलन में स्थान मिला है।
    देखिए इनकी एक रचना गीता प्राकट्य का यह अंश-
बाल-वृद्ध, नर-नारी जाने
कथाओं का संग्रह है भारत
उन कथाओं में महा कथा है
नाम है जिसका महाभारत
     खामोश खामोशी और हम संकलन को सांगोपांग पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि श्रीमती रश् प्रभा जी ने इसमें भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त साहित्य की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
   मुझे पूरा विश्वास है कि खामोश खामोशी और हम” पाठक से अवश्य लाभान्वित होंगे और प्रस्तुत कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार 
टनकपुर-रोडखटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail .  roopchandrashastri@gmail.com
फोन-09808136060

Friday, October 5, 2012

"बात अन्धश्रद्धा की नहीं है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

बात अन्धश्रद्धा की नहीं है!

   मेरे पूज्य दादा-दादी जी का श्राद्ध पितृपक्ष की षष्टी को पड़ता है। गत वर्ष मैं पंचमी की शाम को देहरी लीप कर उन्हें आमन्त्रित करना भूल गया था। अगले दिन षष्टी थी। विधि-विधान से हमने श्राद्ध किया और उनके हिस्से का भाग दो पत्तलों में रखकर छत की मुंडेर पर रख दिया मगर शाम तक वो भोजन ज्यों का त्यों रखा रहा। एक भी कौआ उन्हें खाने के लिए नहीं आया। मन में पछतावा भी बहुत रहा। 
    लेकिन इस वर्ष हमने वो भूल नहीं की। पंचमी की शाम को देहरी लीप कर पितरों को आमन्त्रित किया कि कल आपका श्राद्ध है। आप अपने हिस्से का भोजन ग्रहण करने अवश्य आयें।
आज षष्टी के दिन हमने विधि-विधान से अपने पूज्य दादा-दादी जी का श्राद्ध किया।
   जैसे ही उनके हिस्से का भोजन पत्तलों में छत की मुंडेर पर रखा, उसको खाने के लिए कागा आ गये।
    कुछ मेरे आर्यसमाजी मित्र इस बात का उपहास भी करते होंगे। मगर मुझे इस बात की परवाह नहीं है। हम लोग जब हवन करते हैं तो प्रचण्ड अग्नि में यज्ञकुंड में घी-हवनसामग्री और पौष्टिक पदार्थ डालते हैं। जिसका सहस्त्रगुना होकर वह पदार्थ पूरे वातावरण में अपनी गन्ध से सारे लोगों को मिल जाता है। आज भी तो हमने वही किया है। हवनकुण्ड में प्रज्वलित अग्नि में भोजन घी और हवनसामग्री की आहुति दी है। जो अन्तरिक्ष में जाकर सभी लोगों को प्राप्त भी हुई है।
    आर्यसमाज ईश्वर, जीव और प्रकृति को अजर और अमर मानता है। फिर जीवात्मा के अस्तित्व को कैसे नकारा जा सकता है। श्राद्ध का अर्थ होता है श्रद्धापूर्वक जीवित के साथ ब्रह्माण्ड में विचरण कर रही जीवात्माओं को भोजन कराना। हमने भी पूरी आस्था और श्रद्धा से वही कार्य आज भी किया है।
   इसके बाद अपने वृद्ध माता-पिता जी को पूरी श्रद्धा से भोजन कराया ताथा उसके बाद खुद भी इस भोजन को खाया है।