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Saturday, April 26, 2014

चाँद-सितारे ला सकता हूँ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
"चाँद-सितारे ला सकता हूँ" 
अपना माना है जब तुमको,
चाँद-सितारे ला सकता हूँ । 
तीखी-फीकी, जली-भुनी सी,
सब्जी भी खा सकता हूँ।

दर्शन करके चन्द्र-वदन का,
निकल पड़ा हूँ राहों पर,
बिना इस्तरी के कपड़ों में,
दफ्तर भी जा सकता हूँ।

गीत और संगीत बेसुरा,
साज अनर्गल लगते है,
होली वाली हँसी-ठिठोली,
मैं अब भी गा सकता हूँ।

माता-पिता तुम्हारे मुझको,
अपने जैसे लगते है,
प्रिये तम्हारी खातिर उनको,
घर भी ला सकता हूँ।

जीवन-जन्म दुखी था मेरा,
बिना तुम्हारे सजनी जी,
यदि तुम साथ निभाओ तो,
मैं अमृत भी पा सकता हूँ।

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